दो रुपये में चपाती, पांच में दाल, 50 में चिकन करी...अब सांसदों को नहीं मिलेगा सस्ता खाना
खास बातें
- सांसदों को कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी पर लगी रोक
- पक्ष और विपक्ष के सांसदों ने सर्वसम्मति से लिया फैसला
- संसद की कैंटीन को हर साल 17 करोड़ रुपये की सब्सिडी
- 2012 से 2017 तक कैंटीन को 73 करोड़ रुपये की सब्सिडी
भारतीय संसद ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। संसद ने निर्णय किया है कि अब सांसदों को कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी पर रोक लगा दी जाएगी। सांसदों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है कि वह संसद की कैंटीन में मिलने वाली खाद्य सब्सिडी को छोड़ देंगे।
यह फैसला लोकसभा अध्यक्ष ओम कुमार बिड़ला के सुझाव के बाद लिया गया है। देशभर में लगातार मांग उठ रही थी कि सांसदों को खाने में सब्सिडी नहीं मिलनी चाहिए। सब्सिडी हटाए जाने पर पक्ष और विपक्ष दोनों से मिलकर फैसला लिया है।
यह फैसला लोकसभा अध्यक्ष ओम कुमार बिड़ला के सुझाव के बाद लिया गया है। देशभर में लगातार मांग उठ रही थी कि सांसदों को खाने में सब्सिडी नहीं मिलनी चाहिए। सब्सिडी हटाए जाने पर पक्ष और विपक्ष दोनों से मिलकर फैसला लिया है।
हर साल 17 करोड़ की सब्सिडी
संसद भवन में सालाना खानपान का बिल लगभग 17 करोड़ रुपये आता है। सब्सिडी हटाए जाने के बाद कैंटीन में खाने के दाम लागत के हिसाब से तय होंगे। पिछली लोकसभा में कैंटीन के खाने के दाम बढ़ाकर सब्सिडी का बिल कम किया गया था।
साल 2015 में एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि कैंटीन में खाने की लागत पर 80 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है। उस समय बीजद के सांसद बिजयंत जय पांडा ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर सब्सिडी खत्म किए जाने की मांग की थी।
बिजयंत जय पांडा ने कहा था कि जब सरकार आर्थिक रूप से मजबूत लोगों से एलपीजी सब्सिडी वापस करने के लिए कह रही है तो सांसदों से भी कैंटीन में सब्सिडी की सुविधा वापस ले लेनी चाहिए। बता दें कि सांसदों को संसद की कैंटीन में काफी सस्ती दरों पर खाद्य पदार्थ मिलते हैं।
साल 2015 में एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि कैंटीन में खाने की लागत पर 80 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है। उस समय बीजद के सांसद बिजयंत जय पांडा ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर सब्सिडी खत्म किए जाने की मांग की थी।
बिजयंत जय पांडा ने कहा था कि जब सरकार आर्थिक रूप से मजबूत लोगों से एलपीजी सब्सिडी वापस करने के लिए कह रही है तो सांसदों से भी कैंटीन में सब्सिडी की सुविधा वापस ले लेनी चाहिए। बता दें कि सांसदों को संसद की कैंटीन में काफी सस्ती दरों पर खाद्य पदार्थ मिलते हैं।
2012-13 से 2016-17 तक मिली 73 करोड़ की सब्सिडी
- 2012-13 से वर्ष 2016-17 तक संसद की कैंटीन को कुल 73,85,62,474 रुपये बतौर सब्सिडी के रूप में दिए गए।
- 2012-13 में 12.52 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
- 2013-14 में 14.09 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
- 2014-15 में 15.85 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
- 2015-16 में 15.97 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
- 2016-17 में 15.40 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भोजन के दाम बढ़ाए गए
- 2016 से अब तक शाकाहारी थाली की कीमत 30 रुपये है, जबकि 2016 से पहले 18 रुपये थी।
- मांसाहारी थाली अब 60 रुपये में मिलती है, जबकि पहले 33 रुपये में मिलती थी।
- थ्री कोर्स मील अब 90 रुपये मिलता है, जबकि पहले 61 रुपये में मिलता था।
2017-18 तक संसद की कैंटीन में खाने के दाम
मांसाहारी खाना
- चिकन करी 50 रुपये प्रति प्लेट
- चिकन कटलेट 41 रुपये प्रति प्लेट
- चिकन तंदूरी 60 रुपये प्रति प्लेट
- फिश करी 40 रुपये प्रति प्लेट
- हैदराबादी चिकन बिरयानी 65 रुपये प्रति प्लेट
- मटन करी 45 रुपये रुपये प्रति प्लेट
शाकाहारी खाना
- ब्रेड एंड बटर 6 रुपये
- वेजिटेबल कटलेट 18 रुपये
- चपाती 2 रुपये
- दाल 5 रुपये
- प्लेन डोसा 12 रुपये
- वेज थाली 35 रुपये
- चाय 5 रुपये
- उबले चावल 7 रुपये
- सूप 14 रुपये
- कॉफी 5 रुपये
- थ्री कोर्स लंच 106 रुपये
कौन लेता है संसद में खाने पर निर्णय
संसद भवन में फूड मैनेजमेंट के लिए एक समिति बनाई जाती है। उस समिति में लोकसभा से 10 सांसद और राज्यसभा से 5 सांसद होते हैं। समिति का कार्यकाल एक साल का होता है। समिति का काम संसद भवन परिसर में स्थित रेलवे कैटरिंग यूनिटों में परोसे जाने वाले खाने की दरों में संशोधन पर विचार करना।
संसद भवन परिसर में रेलवे कैटरिंग इकाइयों को चलाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी के स्तर पर विचार करना, सदस्यों को उत्कृष्ट कैंटीन सेवाओं के प्रावधान पर विचार करना और अन्य संबंधित मुद्दों पर विचार करना इस समिति का काम होता है
संसद भवन परिसर में रेलवे कैटरिंग इकाइयों को चलाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी के स्तर पर विचार करना, सदस्यों को उत्कृष्ट कैंटीन सेवाओं के प्रावधान पर विचार करना और अन्य संबंधित मुद्दों पर विचार करना इस समिति का काम होता है